उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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27 'पुराने रुपए होते ठाकुर, तो महाजनी से अपना गला न छुड़ा लेता, कि सूद भरते किसी को अच्छा लगता है। ' 'गड़े रुपए न निकलें चाहे सूद कितना ही देना ...

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